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अप्रैल, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्रेम और परमात्मा:

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 प्रेम और परमात्मा: प्रेम और परमात्मा संतो की उपदेश देने की रीति-नीति भी अनूठी होती है. कई संत अपने पास आने वाले से ही प्रश्न करते है और उसकी जिज्ञासा को जगाते है; और सही-सही मार्गदर्शन कर देते है. आचार्य रामानुजाचार्य एक महान संत एवं संप्रदाय-धर्म के आचार्य थे . दूर दूर से लोग उनके दर्शन एवं मार्गदर्शन के लिए आते थे. सहज तथा सरल रीति से वे उपदेश देते थे. एक दिन एक युवक उनके पास आया और पैर में वंदना करके बोला : “मुझे आपका शिष्य होना है. आप मुझे अपना शिष्य बना लीजिए.” रामानुजाचार्यने कहा : “तुझे शिष्य क्यों बनना है ?” युवक ने कहा : “मेरा शिष्य होने का हेतु तो परमात्मा से प्रेम करना है.” संत रामानुजाचार्य ने तब कहा : “इसका अर्थ है कि तुझे परमात्मा से प्रीति करनी है. परन्तु मुझे एक बात बता दे कि क्या तुझे तेरे घर के किसी व्यक्ति से  प्रेम है ?” युवक ने कहा : “ना, किसीसे भी मुझे प्रेम नहीं.” तब फिर संतश्री ने पूछा : “तुझे तेरे माता-पिता या भाई-बहन पर स्नेह आता है क्या ?” युवक ने नकारते हुए कहा ,“मुझे किसी पर भी तनिकमात्र भी स्नेह नहीं आता. पूरी दुनिया स्वार्थपरायण है, ये सब मिथ्या...

बोले हुए शब्द वापस नहीं आते:

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बोले हुए शब्द वापस नहीं आते एक बार एक किसान ने अपने पडोसी को भला बुरा कह दिया, पर जब बाद में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह एक संत के पास गया.उसने संत से अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा. संत ने किसान से कहा , ” तुम खूब सारे पंख इकठ्ठा कर लो , और उन्हें शहर  के बीचो-बीच जाकर रख दो .” किसान ने ऐसा ही किया और फिर संत के पास पहुंच गया. तब संत ने कहा , ” अब जाओ और उन पंखों को इकठ्ठा कर के वापस ले आओ” किसान वापस गया पर तब  तक सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे. और किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचा. तब संत ने उससे कहा कि ठीक ऐसा ही तुम्हारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है,तुम आसानी से इन्हें अपने मुख से निकाल तो सकते हो पर चाह कर भी वापस नहीं ले सकते.

चलते रहने की ज़िद! :

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  चलते रहने की ज़िद!  दृढ़ रहने पर प्रेरणादायक कहानी अजय पिछले चार-पांच सालों से अपने शहर में होने वाली मैराथन में हिस्सा लेता था…लेकिन कभी भी उसने रेस पूरी नहीं की थी. पर इस बार वह बहुत एक्साइटेड था. क्योंकि पिछले कई महीनों से वह रोज सुबह उठकर दौड़ने की प्रैक्टिस कर रहा था और उसे पूरा भरोसा था कि वह इस साल की मैराथन रेस ज़रूर पूरी कर लेगा. देखते-देखते मैराथन का दिन भी आ गया और धायं की आवाज़ के साथ रेस शुरू हुई. बाकी धावकों की तरह अजय ने भी दौड़ना शुरू किया. वह जोश से भरा हुआ था, और बड़े अच्छे ढंग से दौड़ रहा था. लेकिन आधी रेस पूरी करने के बाद अजय बिलकुल थक गया और उसके जी में आया कि बस अब वहीं बैठ जाए… वह ऐसा सोच ही रहा था कि तभी उसने खुद को ललकारा… रुको मत अजय! आगे बढ़ते रहो…अगर तुम दौड़ नहीं सकते, तो कम से कम जॉग करते हुए तो आगे बढ़ सकते हो…आगे बढ़ो… और अजय पहले की अपेक्षा धीमी गति से आगे बढ़ने लगा. कुछ किलो मीटर इसी तरह दौड़ने के बाद अजय को लगा कि उसके पैर अब और आगे नहीं बढ़ सकते…वह लड़खड़ाने लगा. अजय के अन्दर विचार आया….अब बस…और नहीं बढ़ सकता! लेकिन एक बार फिर अजय ने खुद को समझाया… रुको मत ...